अयोध्या, भारत की एक प्राचीन नगरी, जिसे श्री राम की जन्मभूमि के रूप में मान्यता प्राप्त है, ने अपने इतिहास में कई महत्वपूर्ण और विवादित घटनाओं का सामना किया है। श्री राम मंदिर की स्थापना और उसके बाद के घटनाक्रम ने भारतीय राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाला है। इस लेख में, हम अयोध्या के इतिहास, राम मंदिर की स्थापना, उसके विवादों और इसके बाद के प्रभाव के बारे में विस्तार से जानेंगे।
मुख्य बिंदु
- अयोध्या का इतिहास और इसकी प्राचीनता भारतीय वेदों और शास्त्रों में उल्लेखित है।
- राम मंदिर की स्थापना का इतिहास और निर्माण की प्रक्रिया विवादित और जटिल है।
- बाबरी मस्जिद और इससे जुड़ी घटनाओं ने भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में एक नया मोड़ लिया।
- राम मंदिर की स्थापना के बाद का प्रभाव भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरा रहा है।
- अयोध्या नगरी अब विश्व की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित हो रही है।
अयोध्या का इतिहास
अयोध्या की प्राचीनता
अयोध्या, भारतीय वेदों और शास्त्रों में उल्लेखित, एक प्राचीन नगरी है। इसका जिक्र अथर्ववेद में भी मिलता है। इस नगरी की प्राचीनता को जानने के लिए हमें इतिहास के गलियारों में घूमना पड़ेगा।
अयोध्या हमेशा से ही श्री राम की जन्मभूमि के रूप में जानी जाती है। इसका धार्मिक इतिहास हमने रामायण में पढ़ा है, लेकिन इसके इतिहास का एक पन्ना विवादित भी है। यह विवाद बाबरी मस्जिद और इससे जुड़ी घटनाओं के आसपास घूमता है।
नगरी कितनी पुरानी है क्या आपको इसका अंदाजा है?
इस वक्त पूरा भारत श्रीराम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर खुशियों में सराबोर है। ऐसे में क्यों ना इतिहास के गलियारों में एक बार घूम लिया जाए। आज हम उन तारीखों की बात करते हैं, जिन्होंने मौजूदा समय में राम मंदिर का स्वरूप निर्धारित करने में मदद की।
अयोध्या का बहुसंख्यक साधु समाज इस बात से खुश है कि आखिरकार लंबे समय से प्रतीक्षित राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। इसके साथ ही अयोध्या नगरी विश्व की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित हो रही है।
अयोध्या के महत्वपूर्ण स्थान
अयोध्या, भारतीय वेदों और शास्त्रों में उल्लेखित एक प्राचीन नगरी, हमेशा से ही श्री राम की जन्मभूमि के रूप में जानी जाती है। इसका धार्मिक इतिहास हमने रामायण में पढ़ा है, लेकिन इसके इतिहास का एक पन्ना विवादित भी है। हम बात कर रहे हैं बाबरी मस्जिद और इससे जुड़ी घटनाओं की।
इस वक्त पूरा भारत श्रीराम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर खुशियों में सराबोर है। ऐसे में क्यों ना इतिहास के गलियारों में एक बार घूम लिया जाए। आज हम उन तारीखों की बात करते हैं, जिन्होंने मौजूदा समय में राम मंदिर का स्वरूप निर्धारित करने में मदद की।
- अयोध्या की प्राचीनता
- अयोध्या के महत्वपूर्ण स्थान
- अयोध्या के ऐतिहासिक घटनाक्रम
यह यात्रा अयोध्या के इतिहास की गहराई में ले जाती है और हमें उसके महत्व को समझने में मदद करती है।
अयोध्या के ऐतिहासिक घटनाक्रम
अयोध्या के ऐतिहासिक घटनाक्रम की बात करें तो यहां की सबसे बड़ी और विवादित घटना थी बाबरी मस्जिद का विध्वंस और उसके स्थान पर श्री राम मंदिर की स्थापना। यह घटना 1992 में हुई थी और इसके बाद देश में धार्मिक तनाव फैल गया था। इसके बाद 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या की जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया था।
- निर्मोही अखाड़ा को 1/3 हिस्सा
- सुन्नी वक्फ बोर्ड को 1/3 हिस्सा
- राम लला विराजमान को 1/3 हिस्सा
यह फैसला देश में विवादों को जन्म दिया था।
इसके बाद 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई शुरू की और 2019 में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि अयोध्या की जमीन पर श्री राम मंदिर का निर्माण होगा। इसके बाद 2020 में श्री राम मंदिर के निर्माण का काम शुरू हुआ और अब यह काम तेजी से चल रहा है।
राम मंदिर का इतिहास
राम मंदिर की स्थापना का इतिहास
इतिहास तो हमने रामायण में पढ़ा है, लेकिन इसके इतिहास का एक पन्ना विवादित भी है। हम बात कर रहे हैं बाबरी मस्जिद और इससे जुड़ी घटनाओं की। इस वक्त पूरा भारत श्रीराम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर खुशियों में सराबोर है। ऐसे में क्यों ना इतिहास के गलियारों में एक बार घूम लिया जाए।
आज हम उन तारीखों की बात करते हैं, जिन्होंने मौजूदा समय में राम मंदिर का स्वरूप निर्धारित करने में मदद की है। अधिकतर लोगों को लगता है कि यह विवाद 70 सालों से चला आ रहा है, लेकिन इसकी नींव असल में 16वीं सदी में ही रख दी गई थी। हालांकि, उससे पहले भी अयोध्या नगरी में मंदिर और मस्जिद के विवाद रहे हैं, लेकिन आधुनिक इतिहास को हम साल 1528 से ही देख सकते हैं।
- 1528: बाबर के समय में मस्जिद का निर्माण
- 1853: पहली बार धार्मिक हिंसा
- 1885: महाराजा द्वारा मंदिर के लिए अदालत में याचिका
- 1949: मूर्तियाँ मस्जिद में स्थापित
- 1986: मस्जिद के द्वार खोले गए
- 1992: मस्जिद को तोड़ा गया
- 2019: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, राम मंदिर के निर्माण की अनुमति
यह एक लंबा सफर था, जिसमें कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन अंततः श्रीराम की भूमि को उसकी पहचान मिली।
राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया
राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया का आरंभ 5 अगस्त 2020 को भूमिपूजन के साथ हुआ था। इस प्रक्रिया की देखरेख श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा की जा रही है। मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी 2024 को निर्धारित है।
यह निर्माण प्रक्रिया कई विवादों में घिरी हुई है, जिसमें दान के कथित दुरुपयोग, अपने प्रमुख कार्यकर्ताओं को दरकिनार करने और भाजपा द्वारा मंदिर का राजनीतिकरण करने के कारण शामिल हैं।
इस प्रक्रिया के महत्वपूर्ण चरणों को निम्नलिखित सूची में दर्शाया गया है:
- भूमिपूजन (5 अगस्त 2020)
- निर्माण की शुरुआत
- देखरेख (श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट)
- उद्घाटन (22 जनवरी 2024)
इस प्रक्रिया के दौरान, विवाद और चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन यह सभी चुनौतियों को पार करने के लिए तैयार है।
राम मंदिर के विवाद
राम मंदिर के विवाद का आरंभ 1980 के दशक में हुआ, जब विश्व हिन्दू परिषद (VHP) ने बाबरी मस्जिद से सटी जमीन पर राम मंदिर का निर्माण शुरू किया। इसके बाद विवाद बढ़ता गया और विभाजन के दौरान धार्मिक हिंसा के घटनाक्रम को भड़काने लगा। इस विवाद के कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
- 1989 में, विहिप के पूर्व उपाध्यक्ष न्यायमूर्ति देवकी नंदन अग्रवाल ने मस्जिद के स्थानांतरण का अनुरोध करते हुए एक मामला दायर किया।
- 1990 में, बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में पार्टी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा का आयोजन किया।
- इस यात्रा का प्राथमिक उद्देश्य राम मंदिर आंदोलन के लिए समर्थन व्यक्त करना था, जिसका नेतृत्व उस समय वीएचपी कर रही थी।
टिप: इस विवाद को समझने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम इसके ऐतिहासिक प्रक्षेपण को समझें और इसके प्रभाव को मान्यता दें।
राम मंदिर की स्थापना किसने की थी?
राम मंदिर की स्थापना के विवाद
राम मंदिर की स्थापना के विवाद को समझने के लिए, हमें इसके इतिहास को समझना होगा। 1980 के दशक में, विश्व हिन्दू परिषद (VHP) ने बाबरी मस्जिद से सटी जमीन पर राम मंदिर का निर्माण शुरू किया। इसके बाद चार मुकदमे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिए गए। 1990 में, बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में पार्टी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा का आयोजन किया।
टिप: रथ यात्रा का प्राथमिक उद्देश्य राम मंदिर आंदोलन के लिए समर्थन व्यक्त करना था।
अदालत ने 2019 में भूमि पर फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि यह भूमि हिंदुओं की है और इस पर राम मंदिर का निर्माण कर सकते हैं। भूमिपूजन 5 अगस्त 2020 को किया गया था। वर्तमान में निर्माणाधीन मंदिर की देखरेख श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा की जा रही है।
- राम मंदिर की स्थापना का इतिहास
- राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया
- राम मंदिर के विवाद
इन तीन बिंदुओं को समझने के बाद ही हम राम मंदिर की स्थापना के विवाद को पूरी तरह समझ सकते हैं।
राम मंदिर की स्थापना के प्रमुख विचारधारा
राम मंदिर की स्थापना के प्रमुख विचारधारा के अनुसार, विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने बाबरी मस्जिद से सटी जमीन पर राम मंदिर का निर्माण शुरू किया। इसके बाद, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में पार्टी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा का आयोजन किया। इस यात्रा का प्राथमिक उद्देश्य राम मंदिर आंदोलन के लिए समर्थन व्यक्त करना था।
यात्रा में संघ परिवार से जुड़े हजारों कारसेवक, स्वयंसेवक शामिल थे।
इसके अलावा, लार्सन एंड टूब्रो ने मन्दिर के डिजाइन और निर्माण की नि:शुल्क देखरेख करने की पेशकश की। इस परियोजना के लिए विभिन्न अनुसंधान संस्थानों ने सहायता प्रदान की।
अयोध्या के भव्य राम मंदिर में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद थे। मंदिर के गर्भगृह में रामलला की दो मूर्तियां रखी गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि यह भूमि हिंदुओं की है और इस पर राम मंदिर का निर्माण कर सकते हैं। मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए ज़मीन का एक अलग टुकड़ा दिया जाएगा। राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत के लिए भूमिपूजन 5 अगस्त 2020 को किया गया था। मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी 2024 को निर्धारित है।
राम मंदिर की स्थापना के संबंध में विवादित तथ्य
राम मंदिर की स्थापना के संबंध में कई विवादित तथ्य हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
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लार्सन एंड टूब्रो ने मन्दिर के डिजाइन और निर्माण की नि:शुल्क देखरेख करने की पेशकश की और वह इस परियोजना के ठेकेदार हैं।
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केन्द्रीय भवन अनुसन्धान संस्थान, राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसन्धान संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (जैसे बॉम्बे, गुवाहाटी और मद्रास) मिट्टी परीक्षण, कङ्क्रीट और डिजाइन जैसे क्षेत्रों में सहायता कर रहे हैं।
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सरयू की एक धारा की पहचान में सहायता की।
यह जरूरी है कि हम इन विवादित तथ्यों को समझें और उन्हें सही संदर्भ में देखें।
विवाद के बावजूद, राम मंदिर की स्थापना का कार्य जारी है और यह उम्मीद की जाती है कि मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी 2024 को होगा।
राम मंदिर की स्थापना के बाद का प्रभाव
राम मंदिर के निर्माण का प्रभाव
राम मंदिर के निर्माण का प्रभाव भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरा रहा है। इसका निर्माण न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। निर्माण की प्रक्रिया में विभिन्न संस्थाएं और संगठनों ने अपना योगदान दिया है।
लार्सन एंड टूब्रो ने मन्दिर के डिजाइन और निर्माण की नि:शुल्क देखरेख करने की पेशकश की। इसके अलावा, केन्द्रीय भवन अनुसन्धान संस्थान, राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसन्धान संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (जैसे बॉम्बे, गुवाहाटी और मद्रास) ने मिट्टी परीक्षण, कङ्क्रीट और डिजाइन जैसे क्षेत्रों में सहायता की।
टिप: राम मंदिर के निर्माण का प्रभाव समाज पर गहरा और व्यापक है। इसे समझने के लिए, हमें इसके धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं को समझना होगा।
इसके अलावा, राम मंदिर के निर्माण के बाद भी कुछ विवाद उभरे हैं। उदाहरण के लिए, अस्थायी मंदिर के संरक्षक रहे रामानंदी अखाड़ों के बीच नए मंदिर में पूजा और भोग आदि पर किसका नियंत्रण होना चाहिए, इस पर विवाद हुआ।
राम मंदिर के निर्माण का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
राम मंदिर के निर्माण का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव गहरा और व्यापक है। इसका प्रभाव सिर्फ अयोध्या या उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे भारत और विश्व के हिंदू समुदाय पर पड़ रहा है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि भारत के विभिन्न हिस्सों से लाखों लोग अयोध्या आ रहे हैं और मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं।
राम मंदिर के निर्माण का सामाजिक प्रभाव:
- साधु समाज का खुश होना: बहुसंख्यक साधु समाज इस बात से खुश है कि आखिरकार लंबे समय से प्रतीक्षित राम मंदिर का निर्माण हो रहा है।
- धर्म दास की लड़ाई: धर्म दास ने लंबी लड़ाई लड़ी है और वह कहते हैं, "रणनीति होना महत्वपूर्ण है."
- रामनामी समाज: रामनामी समाज ने भी अपना समर्थन जताया है, जो राम की मूर्ति की पूजा नहीं करते, बल्कि रामचरितमानस और रामायण की पूजा करते हैं।
राम मंदिर के निर्माण का सांस्कृतिक प्रभाव:
- राम मंदिर का निर्माण भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।
- यह निर्माण भारतीय इतिहास और संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्से को पुनर्जीवित कर रहा है।
यह निर्माण न केवल एक भौतिक संरचना का है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जागरूकता का प्रतीक है।
निष्कर्ष
इस लेख के माध्यम से हमने अयोध्या के श्री राम मंदिर की स्थापना के बारे में विस्तार से जाना। इसका इतिहास, विवाद, और अंततः इसकी पुनः स्थापना की गई घटनाओं को हमने विस्तार से जाना। यह मंदिर न केवल भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रतीक है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि अयोध्या हमेशा से ही श्री राम की जन्मभूमि रही है। इसके साथ ही, यह भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है और भविष्य में भी रहेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
अयोध्या का श्री राम मंदिर की स्थापना किसने की थी?
मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने अयोध्या में उनका मंदिर बनवाया था।
राम मंदिर की स्थापना कब हुई?
राम मंदिर की स्थापना का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन वर्तमान स्वरूप की स्थापना 22 जनवरी 2024 को हुई।
राम मंदिर की स्थापना के बाद क्या प्रभाव पड़ा?
राम मंदिर की स्थापना के बाद भारत भर में धार्मिक उत्साह और आनंद की लहर दौड़ गई। यह भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी।
राम मंदिर की स्थापना के विवाद क्या थे?
राम मंदिर की स्थापना के आसपास कई विवाद थे, जिसमें बाबरी मस्जिद का विध्वंस और धार्मिक टेंशन शामिल थे।
राम मंदिर का इतिहास क्या है?
राम मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने अयोध्या में उनका मंदिर बनवाया था।
राम मंदिर की स्थापना में किसका योगदान था?
राम मंदिर की स्थापना में कई लोगों और संगठनों का योगदान था, जिसमें वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ, और RSS प्रमुख मोहन भागवत शामिल हैं।
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