लग्न एवं सप्तम स्थान में होने वाले कालसर्प योग को अनंत कालसर्प योग कहते है तनुभाव में राहु तथा जायाभाव में केतु की स्थिति में अनंत कालसर्प योग होता है इस प्रकार के योग में जातक जीवन भर दुःख ही भोगता है मानसिक रूप से अशांत रहता है उसका जीवन तथा मन सदैव अस्थिर होता है वह दुष्ट बुद्धि का होता है कपटी तथा लम्पट होता है मिथ्या भाषी होता है षडयंत्रो में फंसा रहता है कोर्ट कचहरी के मामलो में परेशान रहते हुए अपना बहुत ही नुक्सान करता है उसको अपनी प्रतिष्ठा के लिए तथा जीवन के आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है उसका सम्पूर्ण जीवन भयंकर संघर्ष में बीतता है